किसानों को बताए शुष्क भूमि पर खेती की तकनीक और फायदे

किसानों को बताए शुष्क भूमि पर खेती की तकनीक और फायदे

इंदौर। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय (कृषि महाविद्यालय) में जलवायु परिवर्तन और शुष्क भूमि कृषि पर एक किसान-वैज्ञानिक संवाद बैठक और प्रदर्शनी कॉलेज सभागार में आयोजित की गई। इस बैठक का उद्देश्य विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए फसल उगाते समय ध्यान रखने योग्य बातों के बारे में जानकारी प्रदान करना और प्रति वर्ष 750 मिमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में फसलों की खेती करना था।

कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों निगनोटी, भिसाखेड़ी, उपदीनाथ, तहसील इंदौर, दमाली तहसील महू, बागला तहसील महिदपुर, रत्नाखड़ी तहसील उज्जैन जिले और अन्य आसपास के गांवों से कुल 250 किसानों ने भाग लिया। शुष्क भूमि अनुसंधान फार्म में संबंधित विषयों के बारे में किसानों को ऑन-फील्ड प्रदर्शन दिया गया।

शुष्क भूमि कृषि तकनीक से खेती के बताए लाभ

वर्षा जल प्रबंधन: शुष्क भूमि कृषि में अन्य तकनीकों की तुलना में पानी की आवश्यकता कम होती है। वर्षा जल फसलों की आवश्यकताओं को पूरा करता है और कम पानी में अधिकतम उत्पादन प्राप्त करता है।

फसल और फसल प्रणाली: फसलें अंतरफसल प्रणाली (दो या दो से अधिक फसलों को पास-पास उगाने की प्रथा) में उगाई जाती हैं, ताकि यदि एक फसल नष्ट हो जाए, तो इससे किसानों के अस्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। फसलें समृद्ध पोषण मूल्य के साथ उगाई जाती हैं। आरवीएसकेवीवी अनुसंधान फार्म में पिछले 33 वर्षों से पोषक तत्व प्रबंधन के लिए एक परियोजना चल रही है, जिसमें फसलों को चार अलग-अलग मापदंडों के तहत देखा जाता है। फसल अवशेष के साथ और एक बिना किसी चीज के, केवल खेत की खाद (एफवाईएम) के साथ उर्वरकों के साथ लिया जाता है।

ऊर्जा प्रबंधन: फसलों के लिए कम जनशक्ति, बिजली और बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकता होती है, लेकिन न्यूनतम इनपुट के साथ यह अधिकतम उत्पादन प्रदान करता है।

वैकल्पिक भूमि उपयोग: हाथ में मौजूद संसाधनों का अधिकतम उपयोग। वर्षा आधारित एकीकृत कृषि प्रणालियों के लिए पौधों को कृषि-बागवानी और बागवानी-देहाती प्रणालियों में उगाया जाना चाहिए।

किसानों को दिए चूजे और बकरियां
कार्यक्रम के अंत में किसानों को 650 चूजे और 3 बरबरी बकरियां प्रदान की गईं। उन्हें अमरूद और सीताफल के 250 पौधे भी उपहार में दिए गए। मुख्य अतिथि विनोद कुमार सिंह, निदेशक आईसीएआर-क्रिडा, हैदराबाद और हरेंद्र सिंह, निदेशक आईसीएआर-आईआईएसआर, इंदौर ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। कार्यक्रम का आयोजन डॉ. भरत सिंह मुख्य वैज्ञानिक शुष्कभूमि कृषि एवं अधिष्ठाता मृदुला बिल्लोरे ने किया।

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