फाइलों में ही रेंगती रही योजनाएं

भोपाल। मप्र में बिजली चोरी रोकने के लिए कई योजनाएं बनी। इन पर अरबों रूपए खर्च किए गए लेकिन या तो वे आधी-अधूरी लागू की गईं या वे फाइलों में रेंगती रही।  इसका परिणाम यह को रहा है कि बिजली घाटे का साल दर साल नया रिकॉर्ड बन रहा है और इसके नुकसान की भरपाई के लिए उपभोक्ताओं पर बोझ डाला जा रहा है। जानकारी के अनुसार औसतन हर साल 3000 से 4000 करोड़ रुपए का अंतर आमदनी और खर्च में रहता है। इस बार यह और बढऩे के आसार हैं। इसकी वजह बिजली में घरेलू फीडर पर बढऩे वाला घाटा है। गौरतलब है कि प्रदेश में बिजली का घाटा तमाम प्रयासों के बावजूद खत्म नहीं हो रहा। हाल ये हैं कि घाटा कुछ जगह कम होने के बजाय बढ़ा भी है। राज्य विद्युत नियामक आयोग ने घाटे के जो मापदंड तय किए हैं, वो भी पीछे छूट गए हैं। इसका असर उपभोक्ताओं पर बिजली दर वृद्धि के रूप में पड़ रहा है। वजह ये कि बिजली दर वृद्धि में कंपनियां मुख्य आधार घाटा ही बताती हैं।

नियामक आयोग के मापदंड धराशायी
मार्च 2024 में विद्युत नियामक आयोग ने बिजली कंपनियों को घाटे के जो मापदंड दिए थे, वो बीते करीब आठ महीने में ही धराशायी हो गए हैं। सबसे ज्यादा घरेलू फीडर पर घाटा हो रहा है। इससे पहले यह कृषि फीडर पर ज्यादा रहता था। अभी की स्थिति में लो-टेंशन लाइन पर 52 फीसदी तक का घाटा आंकलित किया गया है। डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर पर 10.07 फीसदी लॉस आंकलित हुआ है। दस फीसदी अन्य लॉस है। घाटा कम करने के प्रयास 2003 से हो रहे हैं। बिजली अधिनियम आने के बाद से सौ फीसदी मीटरीकरण करना तय किया गया। बिजली बोर्ड भंग कर कंपनियां बनाई गईं। आयोग तक कई बार मापदंड पूरे न करने पर कार्रवाई की चेतावनी दे चुका है। वहीं ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का कहना है कि पहले की तुलना में घाटा कम है। बिजली चोरी को भी सख्ती से रोका जा रहा है। इसके अलावा बिजली के विभिन्न लीकेज को रोकने पर भी सख्ती कर रहे हैं।

आमदनी और खर्च में 3000 से 4000 करोड़ का अंतर
मप्र में बिजली कंपनियों के घाटे का आंकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि  औसतन हर साल 3000 से 4000 करोड़ रुपए का अंतर आमदनी और खर्च में रहता है। इस बार यह और बढऩे के आसार हैं। इसकी वजह बिजली में घरेलू फीडर पर बढऩे वाला घाटा है। सूबे में 1.79 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं। बिजली के घाटे का सीधा असर इन पर होता है। दर वृद्धि में नियामक आयोग को बिजली की लागत और घाटा बढऩा बताया जाता है। अगले वित्तीय वर्ष में कोई चुनाव नहीं है। इस कारण दर वृद्धि का झटका लग सकता है। औसतन एक फीसदी घाटा सौ करोड़ से ज्यादा का राजस्व प्रभावित करता है। कंपनियों में 2024-25 के लिए औसत लॉस 17.22त्न तक होना चाहिए। फिलहाल कंपनियों को घाटा इस मापदंड को पार कर चुका है। हालांकि अभी टैरिफ के लिए पूरो घाटे का आकलन नए सिरे से होगा। इसके तहत घाटा अनुमानित व पूर्वानुमान के हिसाब से आंकलित कर प्रस्ताव दिया जाएगा।

Back to top button