पर्व के दिन पापों को विसर्जित करने के लिए आते हैंः अभिषेक चन्द्रावत
पर्व के दिन पापों को विसर्जित करने के लिए आते हैंः अभिषेक चन्द्रावत
श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ का पर्वाधिराज पर्यूषण महापर्व शुरू
ग्वालियर 12 सितम्बर। श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ के 8 दिवसीय पर्वाधिराज पर्यूषण महापर्व मंगलवार से प्रारंभ हो गया। इस अवसर पर श्वेताम्बर जैन समाज के लोगों ने सराफा बाजार स्थित मंदिर में पहुंचकर चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान के दर्शन, प्रक्षाल, स्नात्र पूजा व अष्टप्रकारी पूजा की। तदुपरांत उपाश्रय भवन में महापर्व के प्रथम दिन उपस्थित श्रावकों को श्री वर्घमान जैन स्वाध्याय मंडल जावरा से श्री अमित पारख, अभिषेक चन्द्रावत एवं सौरभ काठेड़ के प्रवचन हुए। प्रवचन देते हुए अभिषेक चन्द्रावत ने नंदीश्वर द्वीप का वर्णन किया कि जहां जाकर देव-देवेन्द्र अट्ठाई महोत्सव मनाते हैं और परमात्मा की भक्ति, पूजा आदि करते हैं। पर्व शब्द की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि पर्व काव्य खण्ड को भी कहते हैं। अंगुली के पांखों को भी पर्व कहा जाता है। पर्व अर्थात पवित्र दिन। अनादि काल से हम संसार में भटक रहे हैं, कारण क्या? हमने धर्म नहीं किया या पाप कर्म ज्यादा किया, क्योंकि पाप कर्म ज्यादा किया, ये पर्व के दिन उन्हीं पापों के विसर्जन के लिए आते हैं। उन्होंने बताया कि पर्व दो तरह के होते हैं लौकिक व लोकोत्तर। लौकिक केन्द्र में शरीर, शरीर को ही सजाना, देखना-दिखाना है तथा लोकोत्तर केन्द्र में आत्मा है। आत्मा का शृंगार-आत्म गुणों के द्वारा किया जाता है। पर्यूषण लोकोत्तर पर्व है जो मन को मांजने वाला भेदों को भेदने वाला, आत्म निरीक्षण, आत्मशोधन करने वाला है। यह पर्व जीवन प्रगति के लिए प्रकाश स्तंभ है जो शुरू होता है भादौ वदी बारस से और पूर्ण होता है भादों सुदी चतुर्थी को, अर्थात अंधियारे (कृष्ण) पक्ष से उजियाले (शुक्ल) पक्ष की ओर ले जाने वाला यह पर्व है। अभिषेक जी चन्द्रावत ने प्रवचन देते हुए कहा कि जैसे मोबाइल में हम अच्छी चीजों को सेव करते हैं और बिना काम की चीजों को डिलीट कर देते हैं। वैसे ही हमें हमारे जीवन में परमात्मा की वाणी को सेव करना है। किसी के अपशब्द, कटु व्यवहार, दूसरों की गलतियों को डिलीट करना है। पयूर्षण में क्या करना? उसके लिए 5 करणीय कर्त्तव्यों का वर्णन आता है।
1. अमारी प्रर्वतन (जीव दया), 2. साधार्मिक भक्ति, 3. चैत्य परिपाटी, 4. तप-त्याग, 5. क्षमायाचना के बारे में बताते हुए अभिषेक चन्द्रावत ने कहा कि किसी जीव को मरने से बचाना अभयदान है। कोई भी जीव मरना नहीं चाहता। अभयदान सभी दानों में सर्वश्रेष्ठ दान है। साधर्मिक भक्ति अर्थात साधर्मिकों के प्रति प्रेम पूर्ण व्यवहार है। सभी के प्रति वात्सल्य भाव हो। चैत्य परिपाटी सभी जिन मंदिरों के दर्शन करना है। सभी मंदिर के दर्शन न भी हो सके तो कम से कम एक मंदिर में तो सेवा-पूजा करना। ऐसे तो ये 8 दिन उपवास के साथ 64 प्रहरी पौषध के होते हैं, जिनसे उपवास न हो एकासना, व्यासना, आयंबिल आदि तक करें। जिनसे कुछ भी तप न हो सके तो कुछ घण्टों का तो पच्चक्खाण करने की कोशिश करें। क्षमापना हमारे पर्यूषण पर्व का प्राण है। सभी जीवों के प्रति क्षमापना का भाव रखकर वैर भाव और क्लेश को दूर करना चाहिए। क्षमा करने वाला सदैव बड़ा होता है। श्री संघ के अध्यक्ष सुनील दफ्तरी, कोषाध्यक्ष सुशील श्रीमाल, कपूरचंद कोठारी, मनोज पारख एवं संजीव पारख ने बताया कि कल पर्व के दूसरे दिन 13 सितम्बर, बुधवार को प्रातः 9 बजे से अभिषेक चन्द्रावत के मुखारविंद से अष्टानिका प्रवचन होगें। रात्रि को सराफा मंदिर जी में परमात्मा की भक्ति 8.30 बजे से होगी। रात्रि 10.30 बजे से उपाश्रय भवन में द्वितीय दादागुरूदेव मणिधारी श्री जिनचन्द्र सुरी जी की 857वीं स्वर्गारोहण की तिथि के निमित रात्रि जागरण का आयोजन रखा गया है।