आखिर सरकारें क्यों जनता को मुफ्तखोर बनाना चाहतीं हैं ?

सत्यनिधि त्रिपाठी (संजू)

चुनाव होते हैं, सरकार बनाती है और शुरू हो जाता है मुफ्त बांटने का कारोबार । चुनाव में जितने भी दल मैदान में किस्मत आजमाने आते हैं सभी कुछ न कुछ मुफ्त बांटने की सौगात जरूर लाते हैं । फिर चाहे वह बिजली हो, पानी हो, राशन हो, घर हो, साइकिल हो, स्कूटी हो, मोबाइल हो, लैपटॉप हो या नगद रकम सब को सब कुछ मुफ्त में क्यों देना होता है । रोजगार की, उद्योग की, ओर विकास की बातें तो बड़ी बड़ी होती हैं मगर सब कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं । सरकारें मुफ्त बांटकर क्यों जनता को पंगु बनाने पर तुली हैं ।

रोजगार और उद्योगों पर जोर क्यों नहीं ?

सरकार जितना धन, समय और दिमाग मुफ्त योजनाओं के क्रियान्वयन पर खर्च करतीं हैं । उतना ही सब यदि क्षेत्र में उद्योग, रोजगार और विकास में खर्च करे तो लगभग प्रत्येक तीन माह के व्यय पर एक जिले में एक ऐसा उद्योग उपलब्ध हो सकता है जिससे युवा वर्ग रोजगार पाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर सकता है । सरकारों को चाहिए कि मुफ्त की योजनाएं बंद कर रोजगार बढ़ाने की तरफ ध्यान दें । मुफ्त देना ही है तो सिर्फ शिक्षा और स्वास्थ्य मुफ्त करें । इससे जनता स्वावलंबी भी बनेगी और देश का विकाश भी आसान हो जायेगा । जनता भी सावधान रहे आपको पंगु बनाने वाले नेताओं के वादों से ।

 

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