जिनालयों में हुई उत्तम संयम धर्म की आराधना
जिनालयों में हुई उत्तम संयम धर्म की आराधना
फिरोजाबा। दसलक्षण पर्व के छठवे दिन जिनालयों में उत्तम संयम धर्म की आराधना की गई। ईस दिन को धूप दशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन जैन समाज के लोग बैंड बाजो के साथ घर से धूप लेकर जाते है और मंदिर में भगवान के दर्शन के साथ धूप चढा कर खूशबू फैलाते है। और कामना करते हैं कि इस धूप की तरह ही हमारा जीवन भी हमेशा महकता रहें।
नगर में जैन धर्म के अनुयाईओं द्वारा दशलक्षण पर्व के साथ सुगंध दशमी को भी बड़े ही उल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर प्रातः जिनालयों में बड़े-बड़े समूहों में एक साथ श्रीजी का जिनाभिषेक एवं शांतिधारा की। इस दौरान घंटे घड़ीयाल एवं श्रद्धांलु के जयकारों की आवाज मंदिरों में गूंजती रही। तत्पश्चात् श्रद्धांलुओं द्वारा शुद्ध मंत्रोंच्चारण के साथ श्रीजी के सम्मुख सोलह कारण, पंच मेरु और उत्तम संयम धर्म के अर्घ्य चढ़ाये। दोपहर को तत्वार्थ सूत्र जी की चर्चा में मुनिश्री ने उत्तम संयम धर्म पर कहा कि प्राणी-रक्षण और इन्द्रिय दमन करना संयम है। स्पर्शन, रसना, घ्राण, नेत्र, कर्ण और मन पर नियंत्रण (दमन, कन्ट्रोल) करना इन्द्रिय-संयम है। पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय जीवों की रक्षा करना प्राणी संयम है। इन दोनों संयमों में इन्द्रिय संयम मुख्य है, क्योंकि इन्द्रिय संयम प्राणी संयम का कारण है, इन्द्रिय संयम होने पर भी प्राणी संयम होता हैं, बिना इन्द्रिय संयम के प्राणी संयम नहीं हो सकता।