प्रदेश की कमान डॉ मोहन यादव के हाथों में

विश्लेषण: क्या शिवराज मामा की तरह लोकप्रियता हासिल कर पाएंगे मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव
विशाल रजक पत्रकार मप्र
मों 9630278207-
बीजेपी ने तीन राज्यों में तीन नए चेहरे मुख्यमंत्री के रूप में दिए हैं। बीजेपी आलाकमान के अप्रत्याशित और चमत्कृत निर्णय से हर कोई आश्चर्यचकित है। शिवराज सिंह चौहान की जगह अब प्रदेश में डॉ.मोहन यादव नए मुख्यमंत्री बन गए है। कई चुनौतियों के बीच सवाल यही है कि क्या वे शिवराज मामा की तरह लोकप्रियता के साथ प्रदेश की विकास गति को बढ़ा पाएंगे या नही…? बुधवार 13 दिसंबर को श्री
महाकाल की नगरी उज्जैन दक्षिण से तीन बार के विधायक डॉ. मोहन यादव ने मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। साथ ही राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा को डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रहलाद सिंह पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय या ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गजों के बीच डॉक्टर मोहन यादव को मिली जिम्मेदारी से हर कोई आश्चर्यचकित हो गया है। खैर; यह भाजपा संगठन का अंदरूनी मसला है, लेकिन आने वाले वक्त में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बतौर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की कार्यप्रणाली और पूर्व में बीजेपी सरकार द्वारा किए गए वादों पर वें किस तरह कार्य करते हैं? बतौर मुख्यमंत्री उनके निर्णय स्व इच्छा से होंगे या फिर सिर्फ भाजपा आलाकमान के इशारे पर तय किए जाएंगे? बुधवार को शपथ ग्रहण के पूर्व पत्रकारों से चर्चा करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के नए मुख्यमंत्री को बधाई दी और साथ ही कहा कि – रमित्रों अब विदा; जस की तस धर दीनी चदरिया…।₹ चार बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान की अंततः विदाई हो गई है। भाजपा संगठन उन्हें नई क्या जिम्मेदारी देता है; यह तो संगठन ही जाने लेकिन मुझे लगता है कि एक कुशल मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने जनकल्याणकारी योजनाओं और अपने इमोशनल ग्रिप के साथ प्रदेश की जनता के साथ खुद को एक नेता के रूप में ही नहीं बल्कि पारिवारिक सदस्य के रूप में जिस तरह से खुद को कम्युनिकेट किया है, वह एक कुशल राजनीतिज्ञ की पहचान है।
एक कुशल वक्ता और प्रशासनिक
पकड़ वाले सीएम के रूप में उन्होंने प्रदेश में अमिट छाप छोड़ी है। बच्चों के मामा और बहनों के भाई कहलाने वाले प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नीतियों और जनता से किए गए वादों को नए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव किस तरह निभाते है; किस तरह तक अंजाम तक पहुंचाते हैं? यह आने वाला वक्त बताएगा। जनता के बीच यह भी चर्चा यह हो रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की महत्वाकांक्षी ₹लाडली बहना योजनार की किस्तें क्या आगे भी निरंतर बहनों को प्राप्त होती रहेगी या फिर सिस्टम के किसी कोने में पेंच फंसा कर इसे बंद कर दिया जाएगा! बतौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वादा किया था कि प्रदेश की बहनों को लाडली बहना योजना के तहत 1000 रुपए से प्रारंभ कर 3000 तक दिए जाएंगे। वर्तमान में प्रदेश की पात्र बहनों को 1250 रुपए प्रतिमाह प्राप्त हो रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री चौहान ने अपनी कई सभाओ में दोहराया था कि – श्मेरा यह संकल्प है कि हर बहन को लखपति बहना बनाऊंगा….।₹ क्या प्रदेश के नए मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री के संकल्प या वचन को आगे बढ़ाएंगे या फिर….?
चुनाव के समय किसानों से बीजेपी ने वादा किया था कि सरकार बनने के बाद गेहूं का मूल्य 2700 रुपए प्रति क्विंटल और धान का मूल्य 3100 प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य किया जाएगा। जबकि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में गेहूं का मूल्य
2600 रुपए प्रति क्विंटल और धान का मूल्य 2500 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य किए जाने का वादा किया था; अब जबकि मध्यप्रदेश में भाजपा को बंपर जीत मिली है। नए मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद प्रदेश के किसानों को यह उम्मीद हैं कि जल्द ही प्रदेश की भाजपा सरकार अपना वादा निभायेगी, बहरहाल सरकार के द्वारा किसानों की उपज के समर्थन मूल्य के नवीन निर्धारण को लेकर कोई आदेश जारी नहीं हुआ हैं!
वैसे राजनीतिक विश्लेषक और बुद्धिजीवी वर्ग यह भी मानता है कि सत्ता प्राप्त करने के लिए जनता से किए गए बेवजह के वादे या फिर लाडली बहना जैसी योजनाएं मतदाताओं को लुभाने के लिए तो बेहतर दिखाई देती है किंतु इससे बेवजह का कर्ज और राजकीय कोष को घाटा भी हो रहा है। कई लोग यह भी मानते हैं कि इस तरह की मुफ्त की योजनाओं से सरकार और जनता दोनों को नुकसान हो रहा है। प्रदेश के लोगों को बेहतर रोजगार मिले, पढ़े लिखे युवाओं को उनकी स्किल के आधार पर काम मिले। किसानों- मजदूरों और प्रदेश की जनता की समस्याओं का निराकरण हो… सरकार के ऐसे प्रयास ज्यादा प्रभावशाली होंगे। खैर; जिस तरह मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जनता ने अपने मतदान का प्रयोग कर अप्रत्याशित निर्णय दिए
हैं। ठीक उसी तरह भाजपा ने भी तीनों राज्यों में ऐसे नए चेहरों को मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया है, जिसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा था। देखिए ! चुनाव के पूर्व नेता और राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के लिए तमाम तरह के वादें करते हैं… राजनीतिक दलों की कोशिश होती है कि कैसे भी सत्ता हासिल कर ली जाए लेकिन चुनाव जीतने के बाद, मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद और जिम्मेदारी रूपी सत्ता हासिल करने के बाद यदि जनता से किए गए वादों पर अमल नहीं किया जाएगा… प्रदेश के किसानों, मजदूरों, युवाओं, महिलाओं, पढ़ने लिखने वाले बेटा-बेटियों के बारे में यदि प्रदेश सरकार गंभीरता से विचार नहीं करेगी तो फिर कौन करेगा? यदि मध्यप्रदेश की बात की जाए तो चार बार के मुख्यमंत्री और जनता से इमोशनल ग्रिप के साथ खुद को कम्युनिकेट करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरह क्या डॉक्टर मोहन यादव भी प्रदेश की जनता से कोई रिश्ता जोड़ेंगे या फिर सिर्फ एक नेता ही बनकर रह जाएंगे ? सवाल तो यह भी है कि लाड़ली लक्ष्मी या लाडली बहना योजना जैसी अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं के साथ जनता के दिलों में राज करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरह क्या प्रदेश के नए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव लोकप्रियता हासिल कर पाएंगे या नहीं? क्या प्रदेश के नए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को बीजेपी आलाकमान का आशीर्वाद लंबे वक्त तक मिलता रहेगा या फिर उनकी ताजपोशी भी सिर्फ लोकसभा चुनाव को देखकर तो नहीं की गई है…? हां एक और बात, मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री; बीजेपी सरकार (पूर्व सीएम चौहान) द्वारा लाडली बहनों को पक्के आवास और 450 रुपए में घरेलू एलपीजी गैस सिलेंडर दिए जाने का वायदा भी जरूर याद रखें…।