मोक्षदा एकादशी व्रत में पंचकोशीय परिक्रमा करके श्री हरि विष्णु ने किया था शरीर का त्याग

जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित मोक्षदा एकादशी तिथि हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व रखता है. इस साल मोक्षदा एकादशी 11 दिसंबर, बुधवार को है. धार्मिक मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है. इतना ही नहीं व्यक्ति को अपने सभी पापों से भी छुटकारा मिलता है. लेकिन एकादशी व्रत के कुछ नियम भी हैं, जिनका पालन करना बेहद जरूरी है वरना आपकी पूजा असफल हो सकती है.

भगवान वराह ने किया मोक्षदा एकादशी व्रत : वराह पुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु ने अपने तीसरे अवतार में वराह रूप में हिरणाक्ष्य राक्षस का बध करके जब अपने शरीर का त्याग करने के लिए जिस भूमि का चयन किया वह शूकर क्षेत्र था और हजारों वर्षों के युद्ध के बाद जिस समय का चयन किया वह मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि थी. अपने शरीर का त्याग करने से पहले प्रभु ने अपने खुर से एक बहुत बढ़ा गड्ढा खोद कर जल को स्तंभित किया वह आदि गंगा कहलाया. इस दिन वराह भगवान ने अपने शूकर रूप से मुक्ति हेतु उसी आदिगंगा के किनारे रहकर एकादशी का व्रत किया एवं उस जल का आचवन करके अपने व्रत का पारण किया, तत्पश्चात श्री हरि ने अपने वराह (शूकर) रूप में मोक्ष प्राप्त किया. इस तीर्थ में मोक्षदा एकादशी के दिन उस पांचकोषीय शूकर क्षेत्र की परिक्रमा करने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती

मोक्षदा एकादशी से जुड़ी कुछ और खास बातेंः

    मोक्षदा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है.
    इस दिन व्रत रखने से पापों से मुक्ति मिलती है और पितरों को मोक्ष दिलाने में मदद मिलती है.
    मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इसलिए, इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है.
    मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत रखने और पूजा करने से मनोवांछित फल मिलते हैं.
    एकादशी का व्रत रखने के बाद दान करना चाहिए.
    मोक्षदा एकादशी का व्रत हर साल मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है.
    मोक्षदा एकादशी पर श्री हरि ने की शूकर क्षेत्र में पंचकोषीय परिक्रमा.
    मोक्षदा एकादशी पर सोरों शूकर क्षेत्र में पंचकोषीय परिक्रमा. करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं अनंतफल की प्राप्ति होती है.

 मोक्षदा एकादशी व्रत कथा : मोक्षदा एकादशी की कथा के मुताबिक, प्राचीन काल में एक गोकुल नाम का राज्य था. ये राज्य वैखानस नाम के राजा का था. एक रात राजा सो रहा था. सोते समय उसे सपना आया कि उसके पिता को नर्क भेजा गया है और वहां उन्हें खूब प्रताड़नाएं दी जा रही हैं. राजा ऐसा सपना देखकर बहुत ही व्यथिथ हुआ और सोचने लगा कि वो अपने पिता को किस प्रकार नर्क से मुक्त करा सकता है.इसके बाद सुबह होते ही राजा ने राजपुरोहित को बुवावा भेजा. राजपुरोहित आए तो राजा ने उनसे अपने पिता की मुक्ति का रास्ता पूछा. इस पर राजपुरोहित ने कहा कि इस समस्या का निदान सिर्फ त्रिकालदर्शी पर्वत नाम के महात्मा के पास ही है.

ये सुनकर राजा पर्वत महात्मा के आश्रम में पहुंच गया. वहां राजा ने पर्वत महात्मा से प्रथर्ना की और अपने पिता की मुक्ति का रास्ता पूछा. पर्वत महात्मा ने राजा को बताया कि तुम्हारे पिता के हाथों पिछले जन्म में एक पाप हुआ था, जिस कारण उनको नर्क की यातनाएं सहनी पड़ रही हैं. ये सुनकर राजा वैखानस ने पर्वत महात्मा से अपने पिता की मुक्ति का रास्ता बताने को कहा. तब पवर्त महात्मा ने राजा से कहा कि हे राजन आप मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली मोक्षदा एकादशी का विधि विधान से व्रत और पूजा करें. उन्होंने राजा से कहा कि इस व्रत के प्रभाव से आपके पिता को मुक्ति मिल जाएगी.इसके बाद राजा वैखानस अपने राज्य में वापस आ गया और पूरे विधि-विधान से मोक्षदा एकादशी का व्रत रखने के साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने लगा. व्रत का प्रभाव दिखा और राजा के पिता पृतदोष से मुक्त हो गए.

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