मशीनरी का कबाड़खाना बनता जा रहा पंजाब: विशेषज्ञ
मशीनरी का कबाड़खाना बनता जा रहा पंजाब: विशेषज्ञ
चंडीगढ़। एक प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ ने कहा है कि पंजाब तेजी से पराली प्रबंधन मशीनरी के कबाड़खाने के रूप में विकसित हो रहा है और राज्य में पहले से ही ऐसी 1.17 लाख मशीनें हैं और इस साल 20,000 मशीनें और जोड़ी जाएंगी। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन के लिए एक स्थायी समाधान की जरूरत है।
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा चंडीगढ़ में एक रिपोर्ट जारी करने के दौरान बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि परानी जलाने से परे इसको कम करने में आने वाली चुनौतियों पर किसानों का मदद प्रदान करना है। रिपोर्ट तैयार करने में सोशल इम्पैक्ट एडवाइजर्स ने शोधकर्ताओं, क्लीन एयर पंजाब (नागरिकों, नागरिक समाज संगठन के सदस्यों, पेशेवरों और अन्य प्रमुख हितधारकों का एक नेटवर्क) और सीएमएसआर कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ सहयोग किया।
शर्मा ने कहा कि एक टिकाऊ और स्थाई समाधान समय की मांग है। उन्होंने कहा कि कृषक समुदाय के लिए विशेष बजट आवंटन समय की मांग है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की सिफारिश करती है, जिसमें वित्तीय प्रोत्साहन, तकनीकी सहायता और जागरूकता अभियान शामिल हैं। यह मशीनीकृत उपकरणों के लिए परेशानी मुक्त सब्सिडी का प्रस्ताव करता है जो अवशेष प्रबंधन की सुविधा प्रदान करता है, जिससे जलाने की आवश्यकता कम हो जाती है।
रिपोर्ट ज्ञान साझा करने और टिकाऊ प्रथाओं के कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी एजेंसियों, कृषि विशेषज्ञों और किसानों के बीच सहयोग का भी सुझाव देती है। कार्यक्रम में भाग लेते हुए, फतेहगढ़ साहिब के प्रगतिशील किसान पलविंदर सिंह ने रिपोर्ट के दृष्टिकोण पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि किसान भी पर्यावरण की रक्षा करना चाहते हैं, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि समाधान उनकी आर्थिक वास्तविकताओं पर विचार करें। उन्होंने कहा, रिपोर्ट हमारी चुनौतियों को ध्यान में रखती है और व्यावहारिक समाधान पेश करती है जो हमारे हितों के अनुरूप हैं।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्रधान वैज्ञानिक कृषि मौसम विज्ञान डॉ. प्रभज्योत कौर ने कहा, एक अग्रणी वैज्ञानिक के रूप में मैं बदलाव की दिशा से निर्देशित होती हूं। उन्होंने कहा कि विज्ञान और टिकाऊ प्रथाओं के माध्यम से हम भावी पीढ़ियों के लिए एक नीला, उज्ज्वल और स्वच्छ पंजाब बना सकते हैं। पंजाब डेवलपमेंट फोरम के गुरप्रीत सिंह ने कहा, पराली जलाने के स्थायी समाधान की हमारी खोज में, आइए हम सहयोग और समर्थन की भावना से एकजुट हों, यह पहचानते हुए कि समाधान दोष से परे मौजूद हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब के प्रदूषण से संघर्ष ने अच्छी मंशा वाली नीतियों के अनपेक्षित परिणामों को उजागर किया है। पंजाब उप-मृदा जल संरक्षण अधिनियम, 2009, जिसका उद्देश्य कटाई में देरी करके घटते भूजल की रक्षा करना था। इससे गेहूं की फसल से पहले किसानों के लिए जो समय था उसे सीमित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप पराली जलाने में वृद्धि हुई। मशीनीकरण, उन्नत सिंचाई तकनीकों और संकर फसल किस्मों ने चावल और गेहूं की मोनोकल्चर को बढ़ावा दिया है। वैकल्पिक फसलों के लिए सफल खरीद मॉडल की कमी और आपूर्ति श्रृंखला में चुनौतियां विविधीकरण को हतोत्साहित करती हैं। वित्तीय व्यवहार्यता और समर्थन की कमी भागीदारी में और बाधा डालती है।