वनवास के दौरान भगवान राम और माता सीता ने इस घाट पर किया था आराम, ऋषि वाल्मीकि का आश्रम भी यहीं है
मुहम्मदाबाद गोहना क्षेत्र में तमसा तट का पौराणिक महत्व है. इस कथा का संबंध श्री राम और सीता के 14 वर्ष के वनवास से है. जब श्री राम वनवास के लिए निकले, तो उन्होंने तमसा नदी के तट पर स्नान और विश्राम किया था. इसी दौरान वे देवांशी ऋषि से मिलने के लिए देवलस भी गए, जो वर्तमान समय में मऊ जनपद का प्रसिद्ध स्थान है. तमसा तट इसलिए विशेष माना जाता है क्योंकि यह भगवान राम की यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, जहां से उन्होंने अपनी वनवास यात्रा की शुरुआत की थी. जिसका महत्व आज भी है. लोग इस तट पर स्नान करके तट के किनारे बने शिव मंदिर पर पूजा-पाठ करते हैं. जहां लोग अपने मन्नतों को भी मानते हैं और उनकी मुरादें यहां पूरी भी होती हैं.
देव दीपावली का उत्सव
प्रत्येक देव दीपावली पर इस तट पर बड़े ही धूमधाम से देव दीपावली मनाई जाती है. लोग इस तट पर लगभग 11,000 घी के दीए जलाते हैं, जो पूरे क्षेत्र में एक इतिहास बना हुआ है. देव दीपावली पर यहां कई प्रकार की प्रतियोगिताएं भी कराई जाती हैं, जिसमें पूरे क्षेत्र से लोग यहां इकट्ठा होकर प्रतियोगिता में भाग लेते हैं. यहां तट के किनारे बने शिव मंदिर ट्रस्ट के संस्थापक लोकल 18 से बात करते हुए प्रिंस गुप्ता बताते हैं कि यह तट काफी पौराणिक है. इसी तट पर राम, सीता और लक्ष्मण वनवास जाते समय पहले इसी तट के किनारे रुककर विश्राम किया था और इसी तट पर स्नान किया था. तब से इस तट का नाम राजघाट पड़ गया है. यहां लोग आकर अपनी मन्नतों को स्नान करने के बाद मांगते हैं और उनकी मुरादें पूरी भी होती हैं.
रामायण की रचना
तमसा नदी, जिसे टोंस नदी भी कहा जाता है, भारतीय पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है. यह वही नदी है जहाँ भगवान राम ने अपने वनवास के पहले रात बिताई थी. रामायण के अनुसार, जब राम, सीता और लक्ष्मण ने वनवास प्रारंभ किया, तो उन्होंने तमसा नदी के किनारे रात बिताने का निर्णय लिया था. यह स्थान न केवल राम की यात्रा का हिस्सा था, बल्कि यहाँ ऋषि वाल्मीकि का आश्रम भी स्थित था जहाँ उन्होंने रामायण की रचना की.