100 साल में भारत में पहली बार सबसे सूखा रहा अगस्‍त, अलनीनो ने डराया, दुनिया की बढ़ेगी टेंशन

नईदिल्ली

भारत में अल निनो का असर जुलाई में भले ही कम रहा हो लेकिन अगस्त में इसने पूरे देश के मॉनसून को प्रभावित किया। इस वर्ष अगस्त का महीना इतिहास का सबसे सूखा अगस्त रहा है और सामान्य बारिश होने के पूर्व अनुमान धरे के धरे रह गए। पिछले सौ सालों में यह अगस्त सबसे सूखा रहा और इस महीने सामान्य से 36% कम बारिश रही। अगस्त में देश में मात्र 161.7 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई। ऐसा वर्ष वर्ष 1901 के बाद से पहली बार हुआ है जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। भारत में अगस्त 2005 में सामान्य से 25 प्रतिशत कम बारिश और साल 1965 में 24.6 प्रतिशत कम वर्षा दर्ज हुई थी।

साल 1920 में सामान्य से 24.4 प्रतिशत कम और आईएमडी के आंकड़ों के मुताबिक, 2009 में सामान्य से 24.1 फीसदी और 1913 में 24 फीसदी बारिश में कमी रही थी। अगस्त में पूरे 20 दिनों तक मॉनसून सक्रिय नहीं रहा जो 1901 के बाद से अब तक का सबसे खराब आंकड़ा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस साल का अगस्त अब तक का सबसे शुष्क अगस्त रहा। इतिहास में अब तक अगस्त में सबसे कम बारिश 190 मिलीमीटर हुई है लेकिन इस बार यह आंकड़ा 160 मिलीमीटर ही रहा।

'कम बारिश की मुख्य कारण अल नीनो का असर'

सामान्य वर्षों में जुलाई के बाद मॉनसून सीज़न का दूसरा सबसे अधिक बरसात वाला महीना अगस्त ही होता है जिसमें औसतन 255 मिलीमीटर बारिश होती है जो सालाना बरसात का लगभग 22 प्रतिशत बारिश है। आईएमडी प्रमुख मृत्युंजय महापात्र का कहना है कि अगस्त में सामान्य से कम बारिश का मुख्य कारण अल नीनो है। दक्षिण अमेरिका के पास प्रशांत महासागर में पानी का गर्म होना और 'मैडेन जूलियन ऑसिलेशन (एमजेओ) का प्रतिकूल चरण, जिसे बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में संवहन को कम करने के लिए जाना जाता है। अल नीनो आमतौर पर भारत में कमजोर होती मानसूनी हवाओं और शुष्क मौसम से जुड़ा है।

अल-नीनो और मानसून के बीच संबंध

मैडेन जूलियन ऑसिलेशन एक बड़े पैमाने पर अंतर-मौसमी वायुमंडलीय अशांति है जो उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में उत्पन्न होती है और पूर्व की ओर बढ़ती है। यह लगभग 30 से 60 दिनों तक चलने वाली तरंग की तरह है। भारतीय मानसून में समय के साथ उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। मानसून के साल-दर-साल उतार-चढ़ाव काफी हद तक प्रशांत क्षेत्र में समुद्र के तापमान में होने वाले उतार-चढ़ाव से नियंत्रित होते हैं। प्रशांत महासागर में इन दोलनों पर मध्य-पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में गर्म और ठंडे पानी के चरणों यानी अल नीनो और ला नीना का दबदबा होता है। इन्हें अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन (ईएनएसओ) के रूप में जाना जाता है।

आमतौर पर अल नीनो प्रभाव की वजह से प्रशांत क्षेत्र में बहने वाली ट्रेड विंड्स कमजोर होती हैं। ये हवाएं भारत में नमी से भरी मानसूनी हवाओं से जुड़ी होती हैं। इस तरह मानसून को भी धीमा कर देती हैं, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा कम हो जाती है। ऐतिहासिक रूप से, अल नीनो के कम से कम आधे वर्ष मानसून के लिहाज से सूखे थे (जहां अखिल भारतीय स्‍तरपर मानसूनी बारिश दीर्घकालिक औसत के 10% से कम है)। भारत में अगर बारिश कम होती है तो इसका सीधा असर धान की फसल पर होगा। धान की पैदावार कम होती है तो दुनिया में खाद्यान संकट पैदा हो सकता है। भारत ने हाल ही में चावल के निर्यात पर बैन लगाया है जिससे दुनियाभर में दाम बढ़ गए हैं।

क्या है अल-नीनो और ला-नीना

सामान्य परिस्थितियों के दौरान, ट्रेड विंड्स भूमध्य रेखा के साथ पश्चिम की ओर बहती हैं, जो गर्म पानी को दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर ले जाती हैं। उस गर्म पानी को सामान्य करने के लिए, ठंडा पानी गहराई से ऊपर आता है। यह नेचुरल प्रक्रिया ही अल-नीनो और ला-नीना जैसे दो विपरीत जलवायु पैटर्न को जन्म देती हैं। जब यह ट्रेड विंड्स सशक्त होती हैं तो यह ज़्यादा गर्म पानी एशिया की तरफ़ खींच कर लाती हैं जिसको ठंडा करने के लिए समुद्र की गहराई से ज़्यादा ठंडा पानी ऊपर खींच कर आता है, इसे वैज्ञानिक ला नीना के नाम से बुलाते हैं। इसके चलते वातावरण में एक कूलिंग प्रभाव बनता है। वहीं इसके विपरीत जब यह ट्रेड विंड्स कमजोर होती हैं तो यह बहुत कम मात्रा में गर्म पानी को दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर ले जाती हैं। इसके चलते समुद्र की गहरायी से ठंडा पानी ऊपर नहीं आता और यह एक गर्म प्रभाव को जन्म देता है जिसे अल नीनो के नाम से

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