धान फसल कीट-व्याधि के संबंध में किसानों को सामयिक सलाह….

रायपुर: राज्य में खरीफ मौसम के अंतर्गत धान की फसलें अच्छी स्थिति में हैं, किंतु वर्तमान मौसम की उमस और आर्द्रता के कारण कीट एवं व्याधियों का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। कृषि विभाग ने किसानों से अपील की है कि वे सतत रूप से फसलों की निगरानी करें तथा आवश्यकता पड़ने पर ही वैज्ञानिक परामर्श अनुसार कीटनाशकों का सावधानीपूर्वक उपयोग करें।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार धान की फसल पर तना छेदक, पत्ती लपेटक, गंधी बग, पेनिकल माइट, भूरा माहू, झुलसा रोग (ब्लास्ट) तथा शीथ ब्लाइट जैसी समस्याओं के लक्षण विभिन्न विकासखंडों में पाए जा रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को इन कीट-व्याधियों की पहचान और रोकथाम के लिए उपयोगी सुझाव दिए हैं।

पेनिकल माइट पत्तियों पर आंखनुमा धब्बे एवं गांठों का काला पड़ना। इसकी रोकथाम हेतु हेक्सीथायाजोक्स $ प्रोपिकोनाजोल अथवा प्रोपर्राजाईट $ प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव किया जाना चाहिए। भूरा माहू रोग नियंत्रण हेतु पाईमेट्रोजिन अथवा डाइनेट्रफ्युरान का प्रयोग, झुलसा रोग (ब्लास्ट) की रोकथाम के लिए टेबुकोनाजोल $ ट्राइफॉक्सीस्ट्रोबीन अथवा ट्राइसाइक्लाजोल का छिड़काव करना चाहिए। पत्तीमोड़क (चितरी) रोग नियंत्रण हेतु फिपरोनिल का उपयोग, गंधी बग रोग की रोकथाम हेतु इमिडाक्लोप्रिड अथवा थायामेथोक्साम का प्रयोग, तना छेदक के नियंत्रण के लिए कर्टाप हाइड्रोक्लोराइड अथवा क्लोरेन्ट्रानिलीप्रोल का छिड़काव तथा फिरोमोन ट्रैप का उपयोग तथा शीथ ब्लाइट के रोकथाम हेतु हेक्साकोनाजोल का छिड़काव किया जाना लाभप्रद होगा।

कृषि विभाग ने किसानों को यह भी सलाह दी है कि कीटनाशकों के उपयोग से पहले स्प्रेयर की सफाई अवश्य करें। छिड़काव करते समय किसान दस्ताने पहनें, मुंह पर स्कार्फ या मास्क लगाएँ और सुरक्षा के नियमों का पालन करें। साथ ही विभाग किसानों को जैविक कीटनाशकों और पर्यावरण हितैषी उपायों को प्राथमिकता देने हेतु प्रेरित कर रहा है, जिससे विषमुक्त खेती को बढ़ावा मिलेगा और लोगों को स्वस्थ एवं सुरक्षित भोजन उपलब्ध हो सकेगा। कृषि विभाग ने स्पष्ट किया है कि किसी भी प्रकार की कीट-व्याधि की समस्या होने पर किसान अपने नजदीकी ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी अथवा कृषि विज्ञान केन्द्र से तुरंत संपर्क कर वैज्ञानिक सलाह प्राप्त करें।

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