आगामी सरकार पर असमंजस बरकरार , किसकी बनेगी सरकार
आगामी सरकार पर असमंजस बरकरार , किसकी बनेगी सरकार
रिपोर्ट- नीरज शिवहरे
भोपाल। 17 नवंबर को चुनाव संपन्न हो जाने के बाद अब लोंगो की नजर मतगणना पर टिकी हुई है। चारो ओर बस एक ही सवाल पूछा जा रहा है कि आखिरकार तीन दिंसंबर को किसकी सरकार बनेगी। इस बार भाजपा और कांग्रेस ने अपनी सरकार को बनाने के लिए एडी चोटी एक कर रखा है। दोनो प्रमुख दलों ने आम मतदाता को रिझाने के लिए बढ चढकर घोषणा की है।
कांग्रेस ने बिजली ,स्कूटी से लेकर किसानों और महिलाओं तक को रिझाने के लिए शानदार घोषणा की है तो भाजपा ने भी लाडली बहना पर पूरा भरोसा जताया है। अब ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि शिवराज की लाडली बहना की बयार एकतरफा गुल खिलाएगी या फिर 18 वर्षों की भाजपा सरकार और उसके विकास के दावे को पलटकर लोग परिवर्तन की राह चुनेंगे। यह वक्त बतायेगा।
कांग्रेस के दावे
कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदेश कांग्रेस ने भी जमकर मेहनत तो की है । यही वजह है कि कांग्रेस को भरोसा है कि प्रदेश में उसकी वापसी हो रही है। सत्ता का वनवास समाप्त होने जा रहा है। कमलनाथ ने बार बार इस बात को कहा है कि सरकार यह याद रखे कि कल के बाद परसो भी आता है।
ऐसे में यह माना जा रहा है कि प्रदेश में कमलनाथ सरकार की वापसी संभव हो । कुछ संभावना इस बात की ओर भी देखी जा रही है कि प्रदेश का कर्मचारी वर्ग इस बार कांग्रेस के पक्ष् में खडा हुआ है। ऐसे में कुल मिलाकर देखा जाये तो कांग्रेसअपने दावे पर काफी भरोसा किये हुए है।
भाजपा को विकास का सहारा
प्रदेश में लंबे समय से सत्तारूढ भाजपा को अपने विकास पर पूरा भरोसा है। दरअसल बीते 18 साल पहले भाजपा ने विकास यानिकि सडक , बिजली और पानी को लेकर सत्ता में आयी थी । इन वर्षों में भाजपा ने बुनियादी चीजों को बेहतर तो बनाया लेकिन प्रदेश पर जबरदस्त कर्ज का बोझ भी बढा।
दूसरी बात कि प्रदेश में अब अपराध पर नियंत्रण मिला है और परिवहन और अन्य चीजें काफी सुगम हुई हैं। इसका कितना लाभ मिलता है यह तीन दिंसंबर को स्पष्ट हो जायेगा। कुल मिलाकर देखा जाये तो सबके अपने दावे हैं लेकिन सच क्या है यह तो तीन दिसंबर को ही बाहर आयेगा।
यह चर्चाए जोरों पर हैं
राजनीतिक रूप से प्रदेश में जो सबसे अधिक चर्चा है वो यह है कि प्रदेश का आम आदमी अब परिवर्तन चाह रहा है। सवाल यह है कि आखिर परिवर्तन की जरूरत क्यों पडी। दूसरी बात कि इस बार विंध्य से भाजपा का सूपडा साफ होगा या बचेगा यह गंभीर सवाल है।
पिछली बार विंध्य ने जितना सपोर्ट भाजपा को किया था उतना भाजपा नेतृत्व ने विंध्य का ध्यान नहीं दिया। इस नुकशास की भरपाइ आखिरकार कहां होगी। जानकारों का कहना है कि विंध्य में यदि नुकशान होगा भी तो उसकी भरपाइ चंबल संभाग और मालवा से हो जायेगी।
बीएसपी पर सबकी नजर
प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी इस बार सबसे अधिक सीटों पर चुनाव लडी है। यह एक प्रकार से राजनीतिक और चुनावी गुगली है जो अंततह कांग्रेस को नुकशान पहुंचा सकती है। ऐसे में स्वभाविक तौर पर राजनीति के जानकारों की नजर बहुजन समाज पार्टी पर टिकी हुई है। उसकी भूमिका संभवतया बेहद महत्वपूर्ण् हो सकती है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता ।
इस पर भी गौर करने की जरूरत
मप्र में चुनावों पर एक गौर करने वाली बात यह है कि वास्तव में क्या आम आदमी पार्टी इस बार खाता खोल पाएगी? हालांकि जिस हौसले के साथ अरविंद केजरीवाल और मान ने चुनाव प्रचार करने की योजना बनाई थी उसे पूरी तो नहीं कर पाये ।
क्योंकि इडी से लेकर सीबीआई की तलवार सिर पर लटकी थी। दूसरी गौर करने वाली बात यह है कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का राजनीतिक भविष्य भी रिजल्ट तय करेंगे।
बढ सकता है सिंधिया का कद
इस चुनाव में यह भी तय होगा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए चेहरे चुनाव की अग्निपरीक्षा में फिर सफल होंगे या नहीं ? अब असल बारी है। यदि जीत होती है तो निश्चित तोर पर सिंधिया का कद बढेगा । यह तय है ।