बंगाल की कानून-व्यवस्था पर उठ रहे सवाल, कभी ED तो कभी NIA पर हो रहे हमले

बंगाल की कानून-व्यवस्था पर उठ रहे सवाल, कभी ED तो कभी NIA पर हो रहे हमले

बंगाल में पार्टियां बदलीं, सरकार बदली, सियासी चेहरे बदले, पुलिस तंत्र भी बदलता गया, नहीं बदली तो बस कानून एवं व्यवस्था की बदतर हालत। समय के साथ पुलिस डिस्ट्रिक्ट के गठन हुए, कमिश्नरेट बने, दर्जनों थाने खुले, विभिन्न पुलिस प्रकोष्ठ के निर्माण हुए, ढेरों पद सृजित हुए, पुलिसकर्मियों को अत्याधुनिक हथियारों व उपकरणों से लैस किया गया, फिर भी कानून एवं व्यवस्था की स्थिति जस की तस है।

वाममोर्चा के 34 वर्षों के शासनकाल से लेकर वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस के 13 वर्षों के राज तक बंगाल में कानून एवं व्यवस्था की बदहाली प्रत्येक चुनाव में बदस्तूर ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। इस लोकसभा चुनाव में भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है
भाजपा, कांग्रेस, वाममोर्चा से लेकर चुनावी मैदान में उतरे छोटे-बड़े सभी दल कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को लेकर तृणमूल पर निशाना साध रहे हैं। दूसरी ओर राज्य की मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी हर बार की तरह इसे विरोधी दलों की बंगाल की छवि बिगाड़ने की साजिश करार दे रही हैं।

चुनाव आयोग हुआ सतर्क

बंगाल में लोस चुनाव की तारीखों की घोषणा से काफी पहले केंद्रीय बल भेजा जाना और 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश से लगभग आधी सीटें 42 होने पर भी बंगाल में वहां की तरह सर्वाधिक सात चरणों में मतदान कराया जाना, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि चुनाव आयोग इस राज्य को लेकर कितना सतर्क है।

चुनाव की घोषणा से पहले बंगाल में तैयारियों का जायजा लेने कोलकाता आई चुनाव आयोग की पूर्ण पीठ ने राज्य के आला प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों को हिंसा-मुक्त चुनाव कराने का बेहद कड़ा निर्देश दिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार तो यहां तक कहकर गए हैं कि पुलिस-प्रशासन ने अगर ठीक तरीके से अपना काम नहीं किया तो आयोग को काम करवाना आता है।

वर्तमान राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस तो पिछले साल पंचायत चुनाव के समय सड़क पर उतर गए थे। लोगों के बीच सुरक्षा की भावना पैदा करने को उन्होंने इस लोस चुनाव में भी मतदान के दिनों में लोगों के बीच रहने की बात कही है। सियासी विश्लेषकों का कहना है कि बंगाल में भ्रष्टाचार की तरह कानून-व्यवस्था भी बड़ा मुद्दा है। राज्य में कई बार राष्ट्रपति शासन लागू करने की भी मांग उठ चुकी है।

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