साधना का अर्थ यह नहीं कि हमें सिद्धि प्राप्त हो जाए:कनकेश्वरी
ग्वालियर। जब हम गुरू के दिए हुए कुछ निश्चत मंत्रों से समुरिन करते हैं जो उसे साधना कहते हैं, लेकिन साधना का अर्थ यह नहीं कि हमें सिद्धि प्राप्त हो जाएंगी। साधना हमारे अधोगति नहीं होने देती है। उन्होंने कहा कि धर्म से जुड़े लोग गृहस्थों से Óयादा पाखंडी होते हैं, ऐसे पाखंडियों से बचकर रहना चाहिए। एक तपस्वी की साधना के बराबर उनमें बल नहीं हो सकता है, लेकिन फिर भी हमें पद का यथोचित स मान करना चाहिए। यह बात कनकेश्वरी देवी ने कथा के छटवें दिन महलगांव करौली माता मंदिर में आयोजित कथा में कही।
कनकेश्वरी देवी ने गौमाता की महिमा का बखान करते हुए कहा गौमाता जहां रहती है,वहीं दरिद्रता नहीं रहती है। गाय की घी दूध और दही से ही पंचामृत और भगवान का भोग लगता है। गाय प्रकृति की प्रसन्नता का आधार है, ये पशु नहीं स्वयं देवी जगद बा का रूप है। जिस स्वरूप को हम अपनी आस्था का आधार मानते हैं, उसका कोई मूल्य नहीं होता है।उन्होंने कहा कि हम जब बार बार यह कहते हैं कि प्रभु कृपा करो, इसका आशय हम उसकी कृपा पर संदेह कर रहे हैं। आपकी कुलदेवी आप पर सदा कृपा करती है, इसलिए उसकी कृपा पर कभी संदेह मत करो। शस्त्र आपको कुछ हद तक बचा सकता है लेकिन जहां शास्त्रों की क्षमता समाप्त हो जाती है, वहां साधना काम आती है। उन्होंने जनप्रतिनिधियों से कहा कि देवी का स्वरूप मानकर जनता की सेवा करें। सिर्फ नवरात्रि में मां के स्वरूप की आराधना करें। यदि नौ दिन व्रत न रख सके तो सप्तमी, अष्टमी और नवमी को देवी का व्रत जरूर करें।