हिंदी हिंदुस्तान की मातृभाषा ही नहीं राष्ट्र की अस्मिता और गौरव का प्रतीक
हिंदी हिंदुस्तान की मातृभाषा ही नहीं राष्ट्र की अस्मिता और गौरव का प्रतीक
आगरा। हिंदी दिवस की मौके पर रामानुजन इंटरनेशनल स्कूल में एक भव्य आयोजन किया गया। जिसका शुभारंभ विद्यालय की निदेशक इंजी. गौरव जिंदल और प्रधानाचार्य डॉ. मोहिनी जिंदल ने मां शारदे के समक्ष पुष्प अर्जित कर किया।विद्यालय के संगीत प्रवक्ता पंकज शर्मा जी ने सरस्वती वंदना कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस मौके पर विद्यालय के हिंदी प्रवक्ता शिवकुमार चाहर ने बताया कि इस दिन को मनाने की नींव भारत की आजादी के समय ही रख दी गई थी। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। आजादी के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने पहली बार आधिकारिक रूप से 14 सितंबर 1953 को हिंदी दिवस के रूप में बनाया। विद्यालय की छात्राओं ने नाटक के माध्यम से समझाते हुए यह बताया कि हिंदी को हिंदुस्तान की पहचान के रूप में भी जाना जाता है ।भारत में सैकड़ो भाषा व लिपि बोली जाती हैं और पढ़ी जाती है लेकिन हिंदी राष्ट्र को जोड़ने का काम करती है। हिंदी हिंदुस्तान की सबसे लाडली बेटी है। पूरी दुनिया में लगभग 425 मिलियन लोग हिंदी अपनी पहली भाषा के तौर पर बोलते हैं और लगभग 120 मिलियन लोग ऐसे हैं जो दूसरी भाषा के रूप में हिंदी बोलते हैं। विगत दिनों में विद्यालय में हिंदी पखवाड़ा आयोजित किया जा रहा है जिसमें विद्यार्थियों के बीच निबंध, कविता गायन, भाषण, वाद-विवाद, सुलेख आदि प्रतियोगिताओं का आयोजन इस पखवारे में किया गया। इस मौके पर विद्यार्थियों ने एक कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया और अपनी वीर, साहित्यिक और हास्य की कविताओं से श्रोताओं का मुक्त किया। विद्यालय की बालिकाओं ने हिंदी पर एक सामूहिक गीत प्रस्तुत किया। इस मौके पर विद्यालय की उप प्रधानाचार्य एम आर खान, समन्वयक राखी माहेश्वरी, भीमसेन उत्प्रेती, मोनिका शर्मा, भुवनेश्वर सिंह, उत्सव अग्रवाल, रंजीत चाहर, गोविंद बंसल,अंजना वर्मा, जूली चाहर, प्रियंका, कविता, कल्पना, प्रगति जैन, संध्या आदि अध्यापक अध्यापिकाएं उपस्थित रहे।