महात्मा गांधी मेडिकल युनिवर्सिटी में न्यूक्लियर मेडिसिन की राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस आयोजित

जयपुर। देष में न्यूक्लियर मेडिसिन विषेषज्ञों तथा उपचार केन्द्रों की संख्या बहुत ही कम है। इस समय देष में केवल ढाई सौ विषेषज्ञ एटॉमिक एनर्जी ऑफ इंडिया में पंजीकृत हैं।

यदि इसमें तकनीषियनों की संख्या भी जोड दी जाये तो यह ऑंकडा करीब 1450 होता है जो कि आवष्यकता के अनुरूप नहीं है। यह जानकारी महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइन्सेज के वाइस चांसलर डॉ. अचल गुलाटी ने दी। वे यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन द्वारा न्यूक्लियर कार्डियोलोजी सोसाइटी ऑफ इंडिया के सहयोग से आयोजित की गई दो दिवसीय कॉफ्रेंस में मुख्य अतिथि के तौर पर सम्बोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में विषिष्ट अतिथि डॉ. विनय कुमार कपूर थे। कॉन्फ्रेंस के आयोजन सचिव तथा महात्मा गांधी अस्पताल में न्यूक्लियर मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ करण पीपरे ने बताया कि कॉन्फ्रेंस में देष भर से आए 50 से अधिक विषेषज्ञों ने हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि स्टैऊस थैलियम, 201 थैलियम एमपीआई आदि जॉचों के जरिये डायबिटीज, मोटापा, ब्लड प्रेषर तथा फैमिली हिस्ट्री वाले रोगियों में ह्रदयाघात की संभावना की पहचान की जा सकती है। न्यूक्लियर कार्डियोलोजी जॉंचों के जरिये ह्रदयाघात के गोल्डन आवर्स के बाद रक्तवाहिनी में प्लाक तथा सक्रियता की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। इनके जरिये रोगी के लिए स्टेंट अथवा बाइपास उपचार की उपयुक्तता का भी पता लगाया जा सकता है।

डॉ. पीपरे ने बताया कि कॉन्फ्रेंस में सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ अतुल वर्मा तथा सचिव डॉ. सतीष नाथ, डॉ. रामसिंह मीणा, डॉ. हिमांषु बंसल, डॉ. जे के भगत तथा कार्डियोलोजिस्ट डॉ राजीव षर्मा ने भी सम्बोधित किया।  उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर डॉ. करण पीपरे को न्यूक्लियर कार्डियोलोजी सोसाइटी ऑफ इंडिया का नया अध्यक्ष भी मनोनीत किया गया है।

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