तीन दिवसीय शरद रंग महोत्सव सम्पन्न

जयपुर। डेल्फिक काउंसिल ऑफ राजस्थान एवं उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला द्वारा आयोजित हो रहे शरद रंग महोत्सव के अंतिम दिन रविवार को कलाकारों ने कथक नृत्य एवं बासुरी वादन प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया।कार्यक्रम की शुरुआत जयपुर पुलिस आयुक्त बीजू जार्ज जोसफ़,डेल्फ़िक काउंसिल ऑफ़ राजस्थान की अध्यक्ष एवं प्रमुख शासन सचिव श्रेया गुहा,आईएएस मेघराज सिंह रतनू,उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक फुरकान ख़ान ने दीप प्रज्वलन कर की। जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार में तीन दिवसीय शरद रंग महोत्सव में कथक नृत्यांगना मनीषा गुलियानी के घुघुरू की झंकार सुनकर दर्शक झूम उठे। गुलियानी ने विश्वनाथ अष्टकम स्रोत पर अपने घुंघरूओं की थापों के साथ-मेल कर शिव स्तुति पर अपना कथक नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोहा। फिर उन्होंने ताल, तीन ताल बंदिशें और अभिनय में ठुमरी की प्रस्तुति से अपने चेहरे की भाव भंगिमाओं और आकर्षक नृत्य से से रंगायन करतला ध्वनि से गूंज उठा। इस दौरान संगत पर रमेश मेवाल ,तबले पर अंकित पारीक, पढ़त पर शुभम पाल सिंह एवं सितार पर मो. इफारन ने साथ दिया। लाइटिंग गमन मिश्रा ने की। कार्यक्रम में आकर्षण के केंद्र, राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बाँसुरी वादक पंडित चेतन जोशी थे।

उन्होंने अपने कार्यक्रम के प्रारंभ में श्रोताओं से बातचीत में कहा कि आज से नवरात्र का प्रारंभ हो रहा है इस कारण उन्होंने राग दुर्गा का चयन किया है। पंडित जोशी ने अपने वादन का प्रारंभ राग दुर्गा में आलाप, जोड़ तथा झाला से किया। इसमें उन्होंने अति मंद्र सप्तक बजाने का भी अद्वितीय प्रयोग किया, जिसके लिए उनका नाम कई शोध प्रबंधों में भी आया है। संक्षिप्त आलाप के बाद उन्होंने विलंबित रूपक ताल में एक गत रखी, जिसमें विभिन्न प्रकार की लयकारियों का अद्भुत समावेश दिखाई दिया।

मध्य लय की बंदिश “श्याम सुंदर छवि आज निरखि सखी” बजाने से पहले आपने उसे गाकर भी बताया। श्रोताओं की फरमाइश पर पंडित चेतन जोशी ने बंगाल की एक भटियाली धुन सुना कर अपने अविस्मरणीय कार्यक्रम का समापन किया। तबले पर दिल्ली के वरिष्ठ तबला वादक पंडित आशीष सेनगुप्ता ने सधी हुई संगत की। उन्होंने तबले पर अप्रतिम कुशलता का प्रदर्शन कर श्रोताओं का मन जीत लिया। पंडित चेतन जोशी का बाँसुरी वादन श्रोताओं के लिए अविस्मरणीय रहा तथा इसकी गूँज लम्बे समय तक बनी रहेगी।

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