भाजपा को चुनावी जन से आशीर्वाद का भरोसा
भाजपा को चुनावी जन से आशीर्वाद का भरोसा

जमीनी नाराजगी दूर करने भाजपा निकाल रही यात्राएं
भोपाल। मध्यप्रदेश की सत्ता में लगातार अपनी पकड मजबूत बनाए रख्ने के लिए भाजपा ने एक बार फिर ताकत झोंक दी है। इसके लिए भाजपा ने पूरे प्रदेश में जन आशीर्वाद यात्रा निकाल रही है। भाजपा के लिए इस प्रकार की यात्रा का ये फॉर्मूला काफी पुराना है, लेकिन भाजपा ने इसमें रणनीति नई लगाई है। इसके पहले 2013 और 2018 के चुनाव में जन आशीर्वाद यात्रा निकाली जा चुकी है, लेकिन इस बार 3 सितंबर से शुरू हुई ये केवल सिंगल यात्रा नहीं, बल्कि यात्राएं हैं। ये पहले वाली यात्राओं से बिल्कुल अलग यात्रा हैं। उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीजेपी का चेहरा थे। उन्होंने इस यात्रा की 95 दिन अगुवाई की थी।
मप्र में ऐसा पहली बार हो रहा है कि भाजपा ने आम जन से आशीर्वाद पाने के लिए एक नहीं पांच यात्राएं निकाल रही है। यह यात्रा 17 से 21 दिन में प्रदेश की 230 में से 211 विधानसभा सीटों को कवर करेंगी। इनका शुभारंभ 3 सितंबर को चित्रकूट से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कर दिया है। उनके अलावा केंद्रीय मंत्री अमित शाह श्योपुर व मंडला, राजनाथ सिंह नीमच और नितिन गडकरी खंडवा में यात्रा को हरी झंडी दिखाएंगे।
इस बार यात्रा के नए फॉर्मूले से बीजेपी को फायदा मिलेगा? इस यात्रा के पीछे क्या है बीजेपी का धार्मिक, जातीय और क्षेत्रीय समीकरण?
विंनध्य के ब्राह्मण नाराज, इसलिए नड्डा का चेहरा आगे
चित्रकूट (सतना) से शुरू होने वाली यात्रा का शुभारंभ सबसे पहले अमित शाह करने वाले थे लेकिन इसमें बदलाव किया गया और ऐन वक्त पर इसे जेपी नडडा को सौंपा गया। संगठन स्तर पर जानकारी आयी कि यहां के ब्राम्हण वर्ग में गहरी नाराजगी है। खुद चित्रकूट वि धान सभा से पिछली बार के हारे हुए कंडीडेट सुरेंद्र सिंह गहरवार को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है जबकि उसके पास युवा और जुझारू ब्राम्हण् चेहरे के रूप में सुभाष शर्माडोली जैसेे मजबूत प्रत्याशी थे। इसी गलती को सुधारने के लिए पार्टी ने जेपी नडउा को सामने किया और आगे की जिम्मेदारी डा नरोत्तम और राजेंद्र शुक्ला को दी गई। सवालयह है कि इस प्रकार कब तक चलेगा । जानकारी तो यह भी है कि सतना जिले कि सीटों पर ज्यादातर ठाकुरनेताओं को आगे किया गया है। यह समीकरण स्थानीय जनमानस में काफी हद तक घुल गया है। पार्टी को इस चुनौती से बाहर आने के लिए काफी जोर लगाना पडेगा। समय रहते यदि ऐसा नहीं होता है तो यह मान लेना चाहिए कि भाजपाको फायदा नहीं होने वाला।दूसरी वजह है िक सीधी पेशाब कांड के चलते सबसे अधिक नुकसान ब्राम्हण परिवार का ही हुआ है। इसलिए नाराजगी ज्यादा है। इसकी भरपायी करना भाजपा के लिए बडी चुनौती है।
यह है समीकरण –
विंध्य क्षेत्र में 30 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से 23 सीटें ऐसी हैं, जहां ब्राह्मणों की आबादी 30 प्रति शत के करीब है। यदि प्रदेश की बात करें तो मप्र में 10 प्रतिशत से ज्यादा ब्राह्मण वोटर हैं। विंध्य, महाकौशल, चंबल और मध्य क्षेत्र पर गौर करें तो यहां की 60 सीटें ऐसी हैं, जहां ब्राह्मणों की नाराजगी या खुशी ही हार-जीत तय करती हैं।
बडी चुनौती –
बता दें कि कुछ समय पहले हुए सीधी पेशाब कांड के आरोपी प्रवेश शुक्ला के घर पर बुलडोजर चला दिया गया था। इसके बाद घटना के पीड़ित को आर्थिक सहायता देकर आदिवासियों को संदेश भी देने की कोशिश की गई कि बीजेपी इस समाज के साथ है। सरकार ने आदिवासियों को तो साध लिया , लेकिन शुक्ला के घर पर बुलडोजर चलने के कारण ब्राह्मण समाज सरकार से नाराज ही है।सवाल है कि एेसे में जेपी नडडा को आगे करके प्रदेश भाजपा नुकशान की कितनी भरपाई कर पायेगा।
यहां से गुजरेगी यात्रा –
चित्रकूट (सतना) से भोपाल : यह यात्रा 12 जिलों के 48 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेगी। इसमें 44 मंच सभाएं, 100 रथ सभाएं होंगी। यह 19 दिन में 2343 किमी का सफर तय करेगी।